विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस को हम इस वर्ष कोविड महामारी के मद्देनजर पूरे उत्साह से नहीं!

विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस को हम इस वर्ष कोविड महामारी के मद्देनजर पूरे उत्साह से नहीं!
21 मार्च को हरवर्ष विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस को हम इस वर्ष कोविड महामारी के मद्देनजर पूरे उत्साह से नहीं मना सकते। मगर इस खासदिन पर हमें अपनी समस्याओं को बांटना चाहिए और एक-दूसरे के आत्मविश्वास को बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए। एम्स ऋषिकेश परिवार इस दिवस 21 मार्च विश्व डाउनसिंड्रोम दिवस के अवसर पर संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी की देखरेख में आम लोगों से जुड़ने व उन्हें इस बीमारी को लेकर जागरुक करने के उद्देश्य से गूगल मीट का आयोजन करेगा। एम्स द्वारा इस दिवस पर आयोजित गूगल मीट के माध्यम से आप अपने किसी भी तरह की कला हुनर जैसे चित्रकला, गीत, नृत्य, चुटकुले आदि सामग्री हमें भेज सकते हैं। जिसमें सबसे उत्कृष्ट रचना को संस्थान की ओर से पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। गूगल मीट की जानकारी व पंजीकरण के लिए downsyndaiims2021@gmail.com मेल एड्रस अथवा फोन-वाट्सएप नंबर 8332007530 पर संपर्क किया जा सकता है। आइए हम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों से डाउन सिंड्रोम के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं।
इंसेट – डाउन सिंड्रोम का कारण- सामान्यरूप से शिशु 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है। 23 क्रोमोसोम का एक सेट शिशु अपने पिता से और 23 क्रोमोसोम का एकसेट अपनी मां से ग्रहण करता है। लेकिन जब माता या पिता का एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम शिशु में आ जाता है, तब डाउनसिंड्रोम होता है।
डाउन सिंड्रोम का जोखिम कारक- यदि कोई महिला के 35 साल की उम्र के बाद गर्भवती होती है और उसका पहला बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होता है, अथवा मां या पिता डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हों, तो उनकी संतान इससे ग्रसित हो सकती है।
डाउन सिंड्रोम का लक्षण- चेहरे के फ्लैट फीचर, सिर का छोटा आकार, गर्दन छोटी रह जाना, छोटा मुहं और उभरी हुई जीभ, मांसपेशियां कमजोर रह जाना, दोनों पैर के अंगुठों के बीच अंतर, चौड़ा हाथ और छोटी ऊंगलियां, वजन और लंबाई औसत से कम होना, बुद्धि का स्तर सामान्य से काफी कम होना, समय से पहले बुढ़ापा आना, अंदरूनी अंग की खराबी, हृदय, आंत, कान या श्वास संबंधी समस्याएं आदि हो सकते हैं।
ऐसे लगाएं डाउन सिंड्रोम का पता – प्रेग्नेंसी के दौरान, एक स्क्रीनिंग टेस्ट (ड्यूलटेस्ट, क्वाड्रिपल, अल्ट्रासोनोग्राफी ) और (एमनिओसेंटेसिस) नामक डायग्नोस्टिक टेस्ट किया जाता है, जिसमें इस बीमारी का पता लगाया जाता है। साथ ही डिलिवरी के बाद आपके बच्चे का एक ब्लड सैंपल लिया जा सकता है,
आईडिया फॉर न्यूज़ के लिए ऋषिकेश से अमित सिंह नेगी की रिपोर्ट।

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