एक थे ओशो -ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से अब तो सुधर जाओ।

 

एक थे ओशो -ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से अब तो सुधर जाओ।

*971 करोड़ का राजमहल* ” चुभ रहा है ?
बहुत पीड़ा हो रही है ?
एक थे ओशो … अमेरिकियों पर उनका जादू ऐसा छाया कि एक समय अमेरिकी सरकार से जमीन खरीद कर एक नया शहर ही बसा दिया उन्होंने .. ‘ *रजनीशपुरम* ‘
वही जिससे अमेरिका की आध्यात्मिक लॉबी भी डरती थी

ओशो के पास *Rolls-Royce* कारों का लंबा जखीरा था
करीब 90 … हालांकि कुछ रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि 93 थी और कुछ 100 का भी दावा करते

खैर, मसला यह था कि एक आध्यात्मिक गुरु के पास इतना लग्जरियस Fleet… सो बहुत से लोग जो ओशो को रत्ती भर भी नजदीक से नहीं जानते थे, उनकी ईर्ष्या का एक बहुत बड़ा कारण उनके पास *Rolls-Royce* की भीड़ भी थी
यह मानव स्वभाव है कई बार हम खूबसूरत और बेशकीमती चीजों से स्वतः ही ईर्ष्या भाव पाल लेते हैं … यह एक तरह का निर्दोष मिथ्यावाद है

हुआ यूं कि एक पहुंचे हुए व्यक्ति ने ओशो को पत्र लिखा कि वह उनसे मिलना चाहता है …. ओशो हर खत का जवाब देते थे, तो उन्होंने उस व्यक्ति को किसी रोज उनसे मिलने का लिखित निमंत्रण भेज दिया कि वह आ सकता है

तय दिन पर वह व्यक्ति पहुंचा…. मजमा लगा हुआ था और ओशो जब अपनी रोज की चर्चाओं से निवृत हुए तब वह व्यक्ति अपनी जगह से उठा और उसने पूछा …..

” आप स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरु कहते हैं ”

” *_आप एक ऐसी डेमोग्राफी से बिलॉन्ग करते हैं, जहां करोड़ों लोग रोज रात को बिना खाए सो जाते हैं_* ”

” *लाखों लोगों के सर पर छत नहीं है शिक्षा नहीं है उनके स्वास्थ्य की व्यवस्था नहीं है* ….

*फिर भी आपके पास सैकड़ों महंगी गाड़ियों का काफिला है* ….. *आपको नहीं लगता यह देश की गरीब जनता का मजाक उड़ाने जैसा है* ”

एक सांस में उस व्यक्ति ने अपने सारे सवाल पूछ लिए … जो *सवाल कम आरोप और ताना ज्यादा लग रहे थे*

ओशो ने इशारे से पूछा कि क्या तुम्हारे सवाल समाप्त हो गए ?
उस व्यक्ति ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई और भीड़ से किनारे खड़ा हो गया …. पूरे आत्मविश्वास के साथ , जैसे उसने ओशो को निरुत्तर कर दिया हो

…..
ओशो ने कहना शुरू किया
सरकारें प्रयास कर रही है, संस्थाएं प्रयास कर रही हैं …लोग स्वयं भी प्रार्थना कर रहे हैं …मगर परिणाम क्या है ?
परिणाम है दीनता ..गरीबी …भुखमरी
और लोग इस तरह सोचते हैं जैसे यह सारी जिम्मेदारी किसी और की है

उन्होंने उस व्यक्ति की ओर इशारा करके कहा इन्होंने मुझे पत्र में लिखा था कि आप Rolls से चलते हैं …अगर इसे बेच दें और गरीबों में बांट दें तो कितना अच्छा हो …कितने जरूरतमंदों का पेट भर जाएगा …कितनों के तन पर वस्त्र आ जाएंगे

उन्होंने उसी व्यक्ति से पूछा कि कारों को बेचकर कितना मिलेगा…. 70 करोड़ जरूरतमंद हैं देश में…
अब क्योंकि तुम आ गए हो इसलिए अपना हिस्सा तो अभी लेते जाओ …. पांच पैसा भी नहीं पड़ेगा तुम्हारे हिस्से
बाकी जो जरूरतमंद आएंगे हम उनको देते जाएंगे

लेकिन मजा ऐसा है कि जब मैं Rolls Royce में नहीं चल रहा था तब भी जरूरतमंद इतने ही थे
मैं पैदल चलता था तब भी इतने ही थे
कारों को बेच देने का आईडिया तुम्हारी छुद्र सोच है
तुम्हारा मस्तिष्क गरीबों की पीड़ा से नहीं, तुम्हारा ह्रदय इन कारों के प्रति ईर्ष्या से भरा हुआ है

ओशो ने पूछा कि तुम ही बताओ तुमने जरूरतमंदों के लिए क्या किया …..तुमने अपनी कार बेची … साइकिल बेची ? तुमने अपना मकान बेचा अपनी दुकान बेची
तुम आखिर ऐसा करोगे ही क्यों ….आखिर जरूरतमंद अपने लिए क्या कर रहे हैं ?

जरूरतमंदों का काम एक ही है कि वह लगातार जरूरतें पैदा करते रहें … देश के पास संसाधन कितना है, इसकी चिंता और फिक्र किए बगैर … देख लेना यह जरूरतमंद किसी दिन सरकार को इतना परेशान कर देंगे कि उसे एक या दो बच्चे पैदा होने जैसा कानून बनाना पड़ेगा
लगातार जरूरतें पैदा करना देश के ऊपर उपकार जैसा नहीं है

आखिर तुम भी यहां तक जहाज के पैसे खर्च करके आए होगे ….यही पैसा तुम किसी जरूरतमंद को दे देते
उसका बड़ा उपकार होता
यह जो महंगे कपड़े तुमने पहने हैं इन्हें भी उतार कर यही किसी को दान करते चले जाओ ….. हजारों रुपए की तो तुम्हारी यह चमचमाती घड़ी ही होगी

*वह आदमी मुड़ा और भाग खड़ा हुआ* 🏃‍♂️🏃‍♂️🏃‍♂️🏃‍♂️

……..

*सरकार ने नया संसद भवन बनाया है*
इतनी बड़ी वाली अर्थव्यवस्था वाली सरकार के लिए 971 करोड रुपए कोई बहुत बड़ी बात नहीं है
इससे ज्यादा का तो पुरानी सरकारों के बागड़ बिल्लो ने घोटाला करके माल दबा रखा होगा
घोटाले का माल दिखता नहीं, इसलिए तुम सवाल नहीं करते … संसद भवन दिखता है इसलिए तुम सवाल करने आ जाते हो
देश का संसद भवन 135 करोड़ लोगों की संवैधानिक आस्था का प्रतीक है …. हमारी सबसे बड़ी पंचायत है वह … उसको बनाने में सरकार ने बजट तय किया होगा
*वही बजट जिसमें से तुम्हारे घर का 12000 वाला शौचालय बना होगा*
लोगों की जरूरतें और समस्याएं कभी समाप्त नहीं होने वाली हैं…. नया संसद भवन बनने से सैकड़ों साल पहले भी वह समस्याएं थी और हो सकता है आगे भी रहे …शत प्रतिशत बहुमत वाली सरकार भी इस बात की गारंटी नहीं दे सकती कि वह सारी समस्याएं समाप्त कर देंगी …. समाधान एक सतत प्रक्रिया है और उसमें वक्त लगता है
बहुत हद तक हुआ है ….और आगे अभी होना है

*नया संसद भवन फिजूलखर्ची नहीं है*
*उसमें आम हिंदुस्तानी के मात्र ₹6 लगे हैं*
*इतने में तो रजनीगंधा और तुलसी भी नहीं आती*

*उसको राजमहल कहकर ताने मत मारो भैया*
…..

( लेखक ” *ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से* ” वाले मामलों के जानकार हैं और अखिल भारतीय गड़जर्रा संघ के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं )
जय श्री राम🙏

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Idea for news ke liye delhi se amit singh negi ki report.

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