उत्तराखंड आबकारी विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला!
उत्तराखंड आबकारी विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला!
उत्तराखंड आबकारी विभाग में किस कदर भ्रष्टाचार का बोलबाला है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। आये दिन कोई न कोई मामला आबकारी विभाग से जुड़ा सुर्खियों में बना रहता है। शराब महकमे में अफसर सरकारी रसूख और दौलत पर भरपूर मौज कर रहे। उनको न तो आला अफसरों का डर है न ही कोर्ट का। अगर होता पिछले 24 सालों से ये अफसर बिना नियुक्ति के नौकरी न कर रहे होते। एक ऐसा मामला जिसमें उपर से नीचे तक मिलीभगत की बू आ रही है। क्या है पूरा मामला पेश है एक रिपोर्ट।
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एंकर – अपने कारनामों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले आबकारी विभाग में एक नया कारनामा सामने आया है। देहरादून समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता कर आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा किया। विकेश सिंह नेगी लंबे समय से आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किये हएु हैं। आबकारी विभाग, आयुक्त आॅफिस, मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारटों रिट दाखिल कर चुनौती दी हुई है। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानून नौकरी में हैं ही नहीं। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
बाइट- विकेश सिंह नेगी, समाजसेवी।
वीओ- 2 इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि शुजआत और राहिबा के पद बुंदेलखंड और उत्तराखंड में थे ही नहीं। तकनीकी और वैधानिक तौर पर दोनों सेवा में होने नहीं चाहिए। विकेश ने इसलिए शुजआत को पथरिया पीर मामले में सस्पेंड करने पर भी ये कहते हुए अंगुली उठाई थी कि जो सेवा में ही न हो, उसको सस्पैंड कैसे किया जा सकता है? शुजआत उर्दू अनुवादक से कैसे इंस्पेक्टर बन गए और कैसे सालों तक देहरादून सर्किल के इंस्पेक्टर बने रहे, यह हैरान करने वाली बात है। विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक शुजआत हुसैन, और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर दोनों कैसे 24 साल बाद भी सरकारी सेवा में हैं? साथ ही इंस्पेक्टर भी कैसे बन गए?
बाइट- विकेश सिंह नेगी, समाजसेवी।
आइडिया फॉर न्यूज़ के लिए देहरादून से अमित सिंह नेगी की रिपोर्ट