उत्तरखण्ड -अचानक खुल गया सनसनीखेज राज, इस बड़ी वजह से चहल को किया गया एशिया कप की टीम से बाहर!
उत्तरखण्ड -अचानक खुल गया सनसनीखेज राज, इस बड़ी वजह से चहल को किया गया एशिया कप की टीम से बाहर!
आखिरकार उस राज के ऊपर से पर्दा उठ गया है कि आखिर क्यों युजवेंद्र चहल जैसे बेहतरीन लेग स्पिनर को एशिया कप 2023 की टीम से बाहर किया गया. चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर ने भी इस बात का खुलासा करते हुए भारतीय फैंस के सामने बड़ा बयान दिया है.
एशिया कप 2023 के लिए भारत की 17 सदस्यीय टीम से लेग स्पिनर युजवेंद्र हिमालय में पीछे खिसक रही ट्री लाइन, खतरे में बुग्याल, दुर्लभ वनस्पितयां हो रही लुप्त
हिमालय की अल्पाइन वृक्षरेखा में पेड़ों की कुल 58 प्रजातियाँ पाई जाती हैं. हिमालयी क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर यह आवास खतरे में है. बुग्याल कई प्रजातियों का घर हैं.
जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग को कैसे रोका जाये इसे लेकर तमाम नीतियां बन रही है, लेकिन ये नीतियां कागजों, सेमिनार व चिंतन शिविर तक ही सीमित है. इसी का कारण है कि जलवायु परिवर्तन का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है. जिसके चलते अत्याधिक बारिश, फारेस्ट फायर, बर्फबारी की घटनाएं देखने को मिल रही है. वहीं जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय के पारिस्थतिकी पर भी तेजी से पड़ रहा है. यहां लगातार मध्य हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पति उच्च हिमालयी इलाकों की ओर स्थानांतरित हो रही है. जिसके चलते बुग्यालों व यहां उगने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटियां विलुप्त की कगार पर पहुंच चुकी है.
संकट में बुग्याल
पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 आरके मैखुरी बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर धीरे-धीरे हिमालय की वनस्पतियों पर पड़ रहा है. निचले इलाकों में पायी जाने वाली वनस्पति मध्य हिमालयी क्षेत्रों में शिफ्ट हो चुकी है, वहीं मध्य हिमालय में उगने वाले पेड़-पौधे अब उच्च हिमालय में उगने लगे है. वहीं उच्च हिमालय व टेंपरेट जोन में पाई जाने वाली वनस्पतियां बुग्यालों की ओर स्थानांतरित हो रही है. जिससे बुग्यालों में उगने वाले दुलर्भ वनस्पति, जड़ी-बूटियों को उगने के लिए स्थान नहीं मिल रहा है.
ऐसे ही ट्रीलाइन खिसकती रही तो जल्द ही कई वानस्पतिक औषधीय प्रजातियां विलुप्त की कगार पर पहुंच जायेगी.
बुग्यालों में बढ़ा तापमान तो होगा नुकसान
गढ़वाल विश्वविद्यालय के हेप्रेक संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विजयकांत पुरोहित का कहना है कि ट्री लाइन खिसकने की बात कही तो जा रही है, लेकिन इसके ठोस परिणाम अभी देखने को नहीं मिले हैं. बताते हैं कि पंख वाले बीज उदाहरण के तौर पर देवदार के बीज या इस तरह के एक-दो प्रजातियों के बीज उड़कर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं.
डॉ पुरोहित बताते हैं कि ट्री लाइन तेजी से पीछे खिसकेगी तो हिमालयी क्षेत्रों बुग्यालों पर पेड़-पौधों का कब्जा हो जायेगा, और गर्मी बढ़ती रही तो ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला लगातार बढ़ेगा, जिसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखने को मिलेगा.
कॉपी [पेस्ट विथ थैंक्स
आइडिया फॉर न्यूज़ के लिए देहरादून से ब्यूरो रिपोर्ट.