मौसम चक्र प्रभावित: असमय बर्फबारी से नहीं बढ़ रहा हिमालय के ग्लेशियरों का आकार !
मौसम चक्र प्रभावित: असमय बर्फबारी से नहीं बढ़ रहा हिमालय के ग्लेशियरों का आकार !
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल ने कहा कि कुछ वर्षों से हिमालय क्षेत्रों में असमय बर्फबारी हो रही है। दिसंबर की बर्फबारी ग्लेशियरों को मजबूत रखती है। जनवरी-फरवरी में होने वाली बर्फ नहीं टिक पाती है।
हिमालय क्षेत्र में मौसम चक्र लगातार बदल रहा है। नवंबर और दिसंबर में बर्फ से लकदक रहने वाले पहाड़ों में जनवरी और फरवरी में बर्फबारी हो रही है। समय पर बर्फबारी न होने का असर हिमालय रेंज में करीब 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। असमय बर्फबारी के चलते ग्लेशियरों का आकार भी नहीं बन रहा है। उनके पिघलने की रफ्तार भी बढ़ रही है।
ऐसे में ग्लेशियर व पर्यावरण वैज्ञानिक चिंतित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियरों पर दिसंबर तक बर्फ की एक मोटी परत जमना जरूरी है, जो उन्हें मजबूती देती है। पिछले कुछ वर्षों से बर्फबारी दिसंबर के बजाय जनवरी और फरवरी में हो रही है। यही कारण है कि ग्लेशियर लगातार पिघलकर सिकुड़ने लगे हैं। साथ ही पेयजल स्रोत भी सूखने लगे हैं।
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल ने कहा कि कुछ वर्षों से हिमालय क्षेत्रों में असमय बर्फबारी हो रही है। नवंबर व दिसंबर तक होने वाली बर्फबारी ग्लेशियर के लिए सबसे टिकाऊ परत मानी जाती है। दिसंबर सबसे ठंडा होता है और इस दौरान की बर्फ जल्दी नहीं पिघलती है। दिसंबर की बर्फबारी ग्लेशियरों को मजबूत रखती है।
जनवरी-फरवरी में होने वाली बर्फ नहीं टिक पाती है और वायुमंडल में भी तापमान तेजी से बढ़ना शुरू हो जाता है। डॉ. कुनियाल ने कहा कि नए साल के बाद पहाड़ों में पर्यटन गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं और साथ मकर संक्रांति के बाद से सूर्य की किरणें भी सीधी पड़ना शुरू हो जाती हैं। ऐसे में बर्फ ग्लेशियर पर जल्दी से नहीं टिक पाती है। उन्होंने कहा कि इस सीजन में भी पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा बर्फबारी जनवरी में हो रही है।
सैलानियों की पहली पसंद रहे रोहतांग दर्रा में इस सीजन में भी बहुत कम बर्फबारी हुई है। 20 से 25 फीट बर्फ से लकदक रहने वाले दर्रा में इस बार सात से आठ फीट बर्फ होने का अनुमान है। मनाली-लेह मार्ग पर बारालाचा, शिंकुला, कुंजुम और जलोड़ी दर्रा के साथ छोटा व बड़ा शिगरी ग्लेशियरों में भी अपेक्षा से बहुत कम बर्फ गिरी है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं छोटा और बड़ा शिगरी ग्लेशियर पर शोध कर रहे डॉ. अनुराग ने कहा कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के ताजा सर्वे के मुताबिक हिमालय रेंज में कुल 9500 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इनमें हिमाचल के चिनाब बेसिन में 989, रावी बेसिन में 94, सतलुज बेसिन में 258 और ब्यास बेसिन में 144 ग्लेशियर हैं। इनमें अधिकतर ग्लेशियर छोटे हैं।
रावी बेसिन में 95 फीसदी ग्लेशियरों की औसतन लंबाई एक से दो वर्ग किलोमीटर है और असमय बर्फबारी से इन ग्लेशियरों को सबसे ज्यादा खतरा है। इसमें बड़ा शिगरी, छोटा शिगरी, कुलटी, शिपिंग, डिंग कर्मो, तपन, ग्याफांग, मणिमहेश, शिली, शमुंद्री, बोलूनाग, तारागिरी, चंद्रा, भागा, कुगती, लैंगर, दोक्षा, नीलकंठ, मिलंग, मुकिला, मियाड, लेडी ऑफ केलांग, गैंगस्टैंग, पेराड, सोनापानी, गोरा, तकडुंग, मंथोरा, करपट, उलथांपू, थारोंग, शाह ग्लेशियर, पटसेउ, हामटा, पंचनाला सहित सैकड़ों ग्लेशियर असमय बर्फबारी से सिकुड़ रहे हैं।
आइडिया फॉर न्यूज़ के लिए देहरादून से ब्यूरो रिपोर्ट।