भारत की स्वाधीनता के अमृत काल में स्वतंत्रता की ओर होनी चाहिए आगे की यात्रा

भारत की स्वाधीनता के अमृत काल में स्वतंत्रता की ओर होनी चाहिए आगे की यात्रा

‘स्व’ के आधार पर होगी परम वैभव की संकल्पना : तपन कुमार (मुख्य वक्ता)
– 15 अगस्त 1947 को केवल विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली थी, स्वतंत्रता नहीं मिली थी
– भारत की स्वाधीनता के अमृत काल में स्वतंत्रता की ओर होनी चाहिए आगे की यात्रा
– सुपर पावर नहीं विश्व गुरु बनना चाहता है भारत, विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर
– हिमालय हुंकार पाक्षिक पत्रिका के विकसित भारत विशेषांक का विमोचन
देहरादून, 16 जुलाईराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख तपन कुमार ने कहा कि भारत के स्व के आधार पर परम वैभव की संकल्पना साकार होगी। शहरीकरण की विकेंद्रीकरण को कम करना होगा। आध्यात्मिक उन्नति की बात को ध्यान में रखकर आगे आना होगा। राजनीतिक स्वार्थों से इतर काम करना होगा। भारत कभी सुपर पावर नहीं बल्कि विश्व गुरु बनना चाहता है। भारतीय दृष्टि संपूर्ण विश्व की चराचर चाहता है। विकसित भारत के लिए आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता पर काम करना हाेगा।

उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद हम भारत का स्वाधीनता दिवस मनाने वाले हैं। कुछ लोग उसे स्वतंत्रता दिवस कहते हैं, लेकिन 15 अगस्त 1947 को हम स्वतंत्र नहीं हुए थे। केवल स्वाधीन हुए थे। केवल विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली थी। स्वतंत्र होना अभी बचा है। वे भाऊराव देवरस कुंज तिलक रोड पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।

कार्यक्रम में राजपुर मार्ग स्थित विश्व संवाद केंद्र के हिमालय हुंकार पाक्षिक पत्रिका के विकसित भारत विशेषांक का विमोचन किया गया। विमोचन के उपरांत क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख तपन कुमार ने कहा कि वास्तव में 1947 में हमने स्वाधीनता प्राप्त की थी, स्वतंत्रता नहीं। स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता ये दोनों ही शब्द सामान्यतः समानार्थी मान कर हम सब प्रयोग करते हैं। परंतु यदि थोड़ा गहराई से विचार करें तो ध्यान में आता है कि दोनों के अर्थ में भिन्नता है। स्वाधीनता शब्द बना है ‘स्व व अधीन’ से यानि अपने लोगों के अधीन। इसी प्रकार स्वतंत्र शब्द बना है ‘स्व एवं तंत्र’ से यानि अपना तंत्र। इसकी और व्याख्या करें तो अपना तंत्र। भारत के स्व का मूल आधार अध्यात्म है। धर्म जीवन जीने के शास्वत मूल्य है।

भारत के ‘स्व’ का मूल आधार अध्यात्म तो जीवन जीने के शास्वत मूल्य है धर्म
1947 के बाद की हमारी यात्रा में भारत के ‘स्व’ का संघर्ष भी सतत चलता आ रहा है। भारत की स्वाधीनता के इस अमृत काल में हमारी आगे की यात्रा सही अर्थों में स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर की होनी चाहिए। किसी भी देश के सन्दर्भ में ‘स्व’ अर्थात उस देश की पहचान है। ‘स्व’ में देश का इतिहास, महापुरुष, मान्यताएं, परम्पराएं, आकांक्षाएं- स्वप्न इत्यादि के साथ साथ उस देश का तत्व ज्ञान, विचार प्रणाली, जीवन दृष्टि, विश्व दृष्टि, निसर्ग दृष्टि इत्यादि भी समाहित है। भारत की दृष्टि से इन सबका मूल आधार ‘अध्यात्म’ है।

हमारे सारे तंत्र का आधार भारत का ‘स्व’ हो, इसके लिए संबंधित तंत्रों के तज्ञ लोगों को उनके विषय से संबंधित तंत्र का भारत का चिंतन क्या है, यह बात समझने के लिए भारत के चिन्तकों द्वारा लिखित साहित्य, परम्पराओं का गहराई से अध्ययन करना होगा। साथ ही भारत के इतिहास में उस प्रकार का तंत्र पहले कैसे, किस प्रकार से काम करता था- यह भी समझना होगा। इसके अलावा अन्यान्य देशों में आज उस तंत्र में किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है, उसे भी समझना पड़ेगा। इस सारी जानकारी के आधार पर भारत की वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत की बातों को कालसुसंगत और विदेश की अच्छी बातों को देशसुसंगत बनाते हुए इस बौद्धिक मानसिक गुलामी के चक्र से हमें बाहर निकलना होगा। भारत के चिन्तन में सदैव विश्व कल्याण, सम्पूर्ण चर- चराचर जगत के कल्याण की बात है, अतः भारत के कल्याण में विश्व का कल्याण ही है। विश्व का इतिहास देखेंगे तो ध्यान में आएगा कि समृद्ध, शक्तिशाली, स्वाधीन भारत सदैव विश्वगुरु रहा है और इस कारण अन्य देशों व समाज का सदैव भला ही हुआ है। जबकि अन्य देश जब भी शक्तिशाली हुए तो वे विश्वविजेता बने या बनाने के प्रयास किए। इसके कारण अन्य देशों को कष्ट हुए या हो रहे हैं। विश्व के अनेक बुद्धिजीवी आज भारत से अपेक्षा कर रहे हैं।
इस मौके पर विश्व संवाद केन्द्र के अध्यक्ष सुरेन्द्र मित्तल, संपादक हिमालय हुंकार रणजीत ज्याला, प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र, प्रांत प्रचार प्रमुख संजय कुमार, सचिव राजकुमार टौंक,बलदेव पाराशर, प्रेम चमोला, मनीष बागड़ी, दिनेश, विवेक कंबोजआदि उपस्थित रहे

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