आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने पर्यावरण डिटर्जेंट प्रदूषक-एसडीएस का पता लगाने के लिए दुनिया का पहला विशिष्ट जीवाणु बायोसेंसर विकसत किया  

 

आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने पर्यावरण डिटर्जेंट प्रदूषक-एसडीएस का पता लगाने के लिए दुनिया का पहला विशिष्ट जीवाणु बायोसेंसर विकसत किया

रुड़की, 30 अक्टूबर 2020: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकर्ताओं की एक पांच सदस्यीय टीम ने सामान्य पर्यावरण प्रदूषक- सोडियम डोडेसिल सल्फेट / सोडियम लॉरिल सल्फेट (एसडीएस) की उपस्थिति का पता लगाने के लिए दुनिया का पहला एवं विश्वसनीय बैक्टीरिया बायोसेंसर विकसित किया है। एसडीएस का उपयोग मुख्य रूप से साबुन, टूथपेस्ट, क्रीम, शैंपू, घरों में कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट, कृषि कार्यों, प्रयोगशालाओं और उद्योगों में किया जाता है। बाद में विभिन्न जलाशयों तथा जल-श्रोतों में इसके प्रवाह से जलीय जीवों, पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवों और संबंधित जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। साथ ही इससे पीने के पानी की गुणवत्ता खराब होती है। इस शोध का उद्देश्य सोडियम डोडेसिल सल्फेट / सोडियम लॉरिल सल्फेट (एसडीएस) की पहचान के लिए एक उपयुक्त बायोसेंसर विकसित करना था।

“अगर एसडीएस का समुचित उपचार नहीं किया जाता है, तो यह समुद्री जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकता है और भूमि तथा जल-निकायों के प्रदूषण का कारण बन सकता है। इस बायोसेंसर की मुख्य विशेषता पर्यावरण में एसडीएस की न्यूनतम मात्रा में उपस्थिति को लेकर भी संवेदनशील होना और एसडीएस तथा एसडीबीएस के बीच अंतर करने की सक्षम होना है,” नवीन कुमार नवानी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी रुड़की, ने कहा।

बायोसेंसर ने सीवेज, नदी और तालाब के पानी के वास्तविक नमूनों में एसडीएस का पता लगाने के लिए एक संतोषजनक और रिप्रोडूसिबल रिकवरी रेट दिखाया। कुल मिलाकर, यह पर्यावरण में एसडीएस की निगरानी के लिए उपयोग की जाने वाली एक विश्वसनीय बायोसेंसर है।

इस शोध के मुख्य लेखक सौरीक डे हैं, जिन्हें आईआईटी रुड़की के जैव प्रौद्योगिकी विभाग-एमएससी प्रोग्राम द्वारा सहयोग दिया गया। उन्होंने अपना प्रोग्राम इस वर्ष पूरा किया और नवंबर के पहले सप्ताह में वे पीएचडी के लिए जर्मनी रवाना हो रहे हैं। उन्होंने अपनी थीसिस प्रोजेक्ट प्रो नवानी की प्रयोगशाला में किया। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने प्रो नवानी को अनुसंधान के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की। टीम के अन्य सदस्य शाहनवाज अहमद बाबा, अंकिता भट्ट, रजत ध्यानी हैं।

औद्योगिक क्षेत्र में एसडीएस का कई रूपों में उपयोग होता है जैसे- इमल्सीफायर, फूड प्रोसेसिंग एजेंट, स्टेबलाइजर, लेदर सॉफ्टनिंग, फोमिंग, फ्लोकुलेटिंग और क्लीनिंग एजेंट। यह घरेलू निर्वहन और औद्योगिक अपशिष्टों में प्रमुख प्रदूषक है। पीने के पानी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट और समुद्री जीवन को होने वाले नुकसान कुछ ऐसे प्रभाव हैं जिसको लेकर चिंताएं बनी हुई हैं।  में समस्या पैदा कर सकता है।

Idea for news ke liye rudki se amit singh negi ki report.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *