राम कथा के दौरान मैंने व्यासपीठ के करीब श्री सीताराम जी के विग्रह के दर्शन हुए।–गुरु श्री शरणानंदजी*
*राम कथा के दौरान मैंने व्यासपीठ के करीब श्री सीताराम जी के विग्रह के दर्शन हुए।–गुरु श्री शरणानंदजी*
ब्रज की पावन रसमय दिव्य धरा श्री रमणरेती धाम में मोरारीबापू के श्रीमुख से गाई जाने वाली ग्यारह दिवसीय रामकथा के आज अंतिम दिन में पूज्य संतों ने कृतार्थता के भाव के साथ आशीर्वादक उद्वोधन किया था। गीता मनीषी पूज्य श्री ज्ञानानंद स्वामीजी ने पूज्य महाराजश्री की प्रतिदिन उदार उपस्थिति और एक श्रोता के शील और परंपरा का पूरी तरह निर्वहन के आदर्श के रूप में सराहना की। उन्होंने बापू की सुशीलता की सराहना करते हुए कहा कि बापू ने इस कथा में एक चौपाई के थोड़े शब्दों को केवल भावानंद के लिए, स्थान और अवसर के अनुकूल किया तब पहले बड़ी विनम्रता के साथ तुलसीदासजी की क्षमा याचना की। न जाने बापू की वाणी ने कितने तनावग्रस्त लोगों को थामा होगा! यहां इन दिनों कृष्ण-प्रेम की एक ऐसी ज्वार उमड़ी कि पता नहीं लगा कि यह रामकथा हो रही है कि ब्रज-प्रेम बरस रहा है!
श्री वेदांतीजी महाराज ने बापू को जंगम तुलसी तरु कहकर अपना सुहृद भाव व्यक्त किया। और कहा,बचपन से ही उनको निधि के रूप में माना है। बापू से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। बापू का संतों के प्रति अत्यंत आदर बड़े-बड़े व्यासाचार्यों के लिए आदर्शरप है। उन्होंने कहा कि कोई निष्ठा और
बापू ने कथा के प्रारंभ में पूज्य चरणों के प्रति अपना विनम्र भाव रखा। कथा के प्रसंग अंतर्गत बापू आज आंसुओं में डूब गए। राम वनवास और भरत प्रेम की कथा गाई तब मानो में उस काल की सभी घटनाएं तादृश हो गई। पंडाल में स्थित सभी के नेत्र आंसू बहा रहे थे। इनमें भी जब कृष्ण का मथुरा जाने का प्रसंग जुड़ गया तब मानो कृष्णप्रेम की भी बाढ आ गई। इसके साथ ग्यारह दिवसीय रामकथा के अनुष्ठान को विराम दिया गया
आइडिया फ़ॉर न्यूसबके लिए रुड़की से अमित सिंह नेगी की रिपोर्ट।