आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार और पुनः उपयोग के लिए दो चरणों वाली प्रक्रिया विकसित की!

आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार और पुनः उपयोग के लिए दो चरणों वाली प्रक्रिया विकसित की!

– यह अध्ययन वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल के इलेक्ट्रोकेमिकल और फोटोकैटलिटिक ट्रीटमेंट के तालमेल पर केंद्रित है जिसमें कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित जैडएनओ कैटरपिलर का उपयोग किया गया है।

– इस तकनीक से वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल से बड़ी मात्रा में रंग (99 प्रतिशत), टीएसएस (~ 75 प्रतिशत) और टीडीएस (~ 80 प्रतिशत) हटाया गया।

– उपचार के बाद यह पानी अन्य कार्यों में दोबारा उपयोग किया जा सकता है।

– इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) तकनीक से वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल डिग्रेडेशन की रियल टाइम निगरानी की जाती है।

देहरादून , 27 जनवरी 2023 :- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के शोधकर्ताओं ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार और पुनः उपयोग के लिए दो चरण की प्रक्रिया विकसित की है। इस उपचार के तहत पहले चरण में सैम्पल को इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉसेस करना शामिल है जिसके बाद दूसरे चरण में कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित जैडएनओ कैटरपिलर का उपयोग कर रियल टाइम में फोटोकँटलिटिक डिग्रेटेशन किया जाता है। इस तकनीक के कई फायदे हैं जैसे अलग-अलग करने पर प्रत्येक प्रक्रिया की बाधाएं कम होने के साथ प्रदूषकों का पूरा डिग्रेडेशन होना और कोई सेकेंडरी प्रदूषण नहीं होना। इस अभूतपूर्व तकनीक से वस्त्र उद्योगों से निकलने वाले रंगीन अपशिष्ट जल को प्रॉसेस किया जा सकता है और उपचार के बाद यह पानी विभिन्न कार्यों में दोबारा उपयोग भी किया जा सकता है।

वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल में तरह-तरह के सिंथेटिक रंग पाए जाते हैं जो मनुष्य और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। इसमें सिंथेटिक टाई की बहुत थोड़ी मात्रा भी आसानी से दिख जाती है और यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जहर का काम करता है इसलिए उपचार की तकनीकों में नवाचार करना समय की मांग है ताकि अपशिष्ट जल में मौजूद डाई के अणुओं का विनाश किया जा सके।

आईआईटी जोधपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकुर गुप्ता शोध विद्वान श्री गुलशन वर्मा और श्री प्रिंस कुमार राय और इसमें कार्त्सरूहे प्रौद्योगिकी संस्थान, जर्मनी साथ उनके के प्रो. जान गेरिट कोरविंक और डॉ. मोसुर इस्लाम ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल की प्राकृतिक जलाशयों में निकासी से पहले दो चरण में उपचार करने की इस प्रक्रिया का पता लगाया है। शोध के निष्कर्ष मटीरियल साइंस और इंजीनियरिंग जर्नल (https://dol.org/10.1016/imgeh.2022116078) में प्रकाशित किए गए हैं।

इस शोध की अहमियत बताते हुए आईआईटी जोधपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकुर गुप्ता ने कहा, “जहां भी संभव हो, अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण और दुबारा उपयोग के बारे में सोचना जरूरी है।”

बड़ी संख्या में स्टील और वस्त्र उद्योग भारी मात्रा में दूषित पानी की निकासी करते हैं। इस समस्या का समाधान करना अत्यावश्यक है टेक्ससटाइल एफ्लुएंट्स (टीई) में डिग्रेडेबल ऑर्गेनिक्स, हेवी मेटल्स, डाई, सर्फेक्टेंट और पीएच नियंत्रित रसायन आदि प्रदूषक पाए जाते हैं भारी मात्रा में पानी उपयोग करने वाले उद्योगों में एक वस्त्र उद्योग है और इसके अपशिष्ट जल में जहरीले कम्पाउंड, मैलापन, हाई कलर,इनऑर्गेनिक और ऑर्गेनिक कम्पाउंड सहित जटिल कम्पोजिशन पाए जाते हैं सामान्य तौर पर जिस टाइप और क्वालिटी का टीई ( रिएक्टिव डाई) उपयोग किया जाता है उसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट जल में प्रदूषण और रंग पाए जाने का ज्यादा जोखिम है। चूंकि वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल की संरचना में बहुत भिन्नताएं होती हैं इसलिए उपचार की अधिकतर प्रचलित प्रक्रियाएं (वर्षा, आयन एक्सचेंज, मेंब्रेन फिल्टरिंग आदि) कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। इसलिए इस समस्या के निदान के लिए वैकल्पिक समाधान समय की मांग है।

शोध की विशिष्टता और मुख्य विशेषताएं:

– यह एकीकृत प्रक्रिया कपड़ों के सैम्पल से कठोर रंग कम करने में बेहतर होने के साथ हाई ऑर्गेनिक मैटर हटाने में सक्षम है।

– फेसाइल फैब्रिकेशन प्रक्रिया से जेडएनओ कैटरपिलर पैदा किया जाता है जो वाप्प-तरल ठोस विधि से सी सब्सट्रेट के कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित होते हैं।

– आईओटी तकनीक से वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल डिग्रेडेशन की रियल टाइम निगरानी की जाती है। यह प्रक्रिया एक नोड एमसीयू माइक्रोकंट्रोलर बोर्ड और पीएच सेंसर को एकीकृत कर की जाती है।

फोटो-कॅटेलिटिक डिकलराइजेशन की प्रक्रिया से हरापन लिए पीले रंग को रंगहीन (99 प्रतिशत) करने मैं लगभग 240 मिनट लगते हैं। इसके अतिरिक्त, वरन उद्योग के अपशिष्ट जल से काफी मात्रा में टीएसएस (~ 75 प्रतिशत) और टीडीएस (~ 80 प्रतिशत) भी निकाल दिए जाते हैं। इसके लिए इलेक्ट्रोकेमिकल और फोटोकैटलिटिक डिग्रेडेशन प्रक्रिया का एकीकरण किया गया। इतना ही नहीं, जैडएनओ कैटरपिलर की हाइड्रोफोबिक प्रकृति (सीए 130.35) और इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉसेसिंग के मिलने से उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार के बारे में अतिरिक्त शोध और उपयोग करने का नया अवसर सामने आया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रयोगशाला में प्रमाणित इस कॉन्सेप्ट के व्यापक उपयोग से उद्योग से निकले अपशिष्ट जल को प्रॉसेस और फिर दुबारा उपयोग किया जा सकता है।

आइडिया फॉर न्यूज़ के लिए देहरादून से अमित सिंह नेगी की रिपोर्ट।

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