एम्स  ऋषिकेश में 500 वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। जिसमें 300 युवा शोधकर्ताओं

एम्स  ऋषिकेश में 500 वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। जिसमें 300 युवा शोधकर्ताओं

 

खिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में सोसायटी ऑफ यंग बायोमेडिकल साइंटिस्ट भारत के तत्वावधान में जेएनयू दिल्ली, एम्स जोधपुर, पीजीआई चंडीगढ़, नाइपर मोहाली, एम्स ऋषिकेश, सीडीआरआई और आईआईटीआर-लखनऊ के सहयोग से आयोजित तृतीय राष्ट्रीय जैव चिकित्सा अनुसंधान प्रतियोगिता विधिवत संपन्न हो गई। प्रतियोगिता में देशभर से 500 वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। जिसमें 300 युवा शोधकर्ताओं ने अपने शोध कार्य को प्रस्तुत किया।

एम्स में प्रेस विज्ञप्ति ऑफ यंग बायोमेडिकल साइंटिस्ट द्वारा आयोजित एनबीआरसीओएम 2021 का शुक्रवार को विधिवत समापन हो गया। पांच दिवसीय राष्ट्रीय जैव चिकित्सा अनुसंधान प्रतियोगिता के तहत “भारत में अनुसंधान परिदृश्य: मुद्दे और चुनौतियां” विषय पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। पैनल में मुख्य वक्ता के तौर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व संकाय प्रोफेसर निरंजन चक्रवर्ती ने हिस्सा लिया। इसके अलावा पैनल में नाइपर, मोहाली के निदेशक प्रो. दुलाल पांडा, आईसीएमआर एनआईवी की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा डी यादव, जेएनयू की प्रो. विभा टंडन, सीडीआरआई, लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. नीरज जैन, लीड साइंटिस्ट इन नैफ्रोन डॉ. प्रवीण कुमार एम. आदि शामिल रहे। परिचर्चा में शामिल वैज्ञानिकों का परिचय एवं संचालन एम्स ऋषिकेश की डॉ. खुशबू बिष्ट व शिवाजी कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. जितेंद्र कुमार चौधरी ने संयुक्तरूप से किया। परिचर्चा में पैनलिस्ट और प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत विचार रखे गए। जिसमें विभिन्न चिकित्सा और गैर-चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों में पीएचडी में शामिल होने वाले युवा नवोदित वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के लिए मेंटरशिप, रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर और फंडिंग की कमी समस्या की समस्या को भी प्रमुखता से रखा गया। इसके अलावा एक अन्य बिंदु में अंतर और अंतर-संस्थागत सहयोग की कमी व प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरणों का कम उपयोग किया जाना आदि पर चर्चा हुई। प्रमुख वक्ताओं ने प्रयोगशालाओं एवं अनुसंधान संस्थानों में असमान धनावंटन से संसाधनों को जुटाने में आने वाली चुनौतियों के बारे में भी चर्चा की। परिचर्चा के निष्कर्ष में यह प्रस्ताव किया गया कि राष्ट्रीय हित में अनुसंधान के स्तर में सुधार के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी होनी चाहिए। सोसायटी के अध्यक्ष रोहिताश यादव ने बताया कि संस्था रिसर्च के क्षेत्र में सरकार व निजी अनुसंधान संस्थानों को आपस में मिलकर शोध के क्षेत्र में कार्य करना चाहिए, जिससे आने वाले समय में देश में शोध के क्षेत्र में बेहतर माहौल बन सकेगा। साथ ही इससे अनुसंधानकर्ताओं, शोधार्थियों को बढ़ावा मिलेगा। प्रतियोगिता के आयोजन में एम्स ऋषिकेश के माइक्रो बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर बलराम जी ओमर, जेएनयू दिल्ली के प्रो. राकेश त्यागी, नाइपर, मोहाली की डॉ. दीपिका बंसल,आईआईटीआर लखनऊ के डॉ. प्रदीप के. शर्मा आदि ने विशेष सहयोग किया। इंसेट
यह रहे परिचर्चा के मुख्य बिंदु- 1) क्या हम एक राष्ट्रीय स्तर पर सामुहिकरूप से अपनी युवा पीढ़ि में वैज्ञानिक स्वभाव को विकसित करने में विफल हो रहे हैं? 2) क्या हम अपने नवोदित शोधकर्ताओं के लिए पर्याप्त शोध निधि, प्रयोगशाला स्थान और अनुसंधान सहयोग अवसर प्रदान करने में सक्षम हैं? 3) क्या हमें देश की विभिन्न प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संस्थानों में अनुसंधान के लिए धन और संसाधन उपलब्धता के मामले में समानता की आवश्यकता है? 4) क्या हमें शोध के क्षेत्र में निजी अनुमति सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी मॉडल) की अनुमति देने की आवश्यकता है? 5) अनुसंधान के क्षेत्र में ईमानदारी और नैतिकता की आवश्यकता आदि।

Idea for news ke liye rishikesh se amit singh negi ki report.

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